Nishikant Sinha: युवाओं की दिलों की धड़कन, NAWADA (बिहार ) की शान। The Youth Icon.

आखिर कौन हैं ? निशिकांत Sinha?

भूमिका :

बिहार के नवादा जिले का भट्टा गांव – भारत के हृदय स्थल में, जहां इतिहास और विरासत का संगम होता है, रेवरा गावं, जहां किसान आंदोलन के प्रणेता स्वामी सहजानंद सरस्वती ने पुरे देश के किसानो को जमींदारी प्रथा से मुक्त कराने की लड़ाई की शरुआत की थी वह काशीचक प्रखंड है, वहां एक चमकता सितारा उभरता है जो युवाओं की एक पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए जिज्ञाशु है। आगे हम इनके बारे मे विशेष चर्चा करेंगे। तो बस कुछ देर मेरे साथ बने रहिए और Nishikant Sinha जी के जीवन का परिचय, उद्देश्य, समाज में उनकी भूमिका को जानेंगे।

नवादा जिले के काशीचक प्रखंड में भट्टा गावं के प्रतिष्ठित परिवार से आने वाले निशिकांत सिन्हा की परिवर्तनकारी यात्रा शुरू करते हैं। अपनी अत्याधुनिक सुख -सुविधाओं को छोड़कर अपनी जन्म भूमि से प्यार और यहाँ के गरीबों, जरूरतमंदो एवं असहाय लोगों को उनके जीवन की महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिये दृढ़ संकल्पित निशिकांत जी का राजनीति में प्रवेश उनकी असाधारण क्षमताओं और समर्पण का प्रमाण है।

निशिकांत जी की यात्रा उनकी प्रतिभा और दृढ़ संकल्प का प्रमाण है। अपने शुरुआती शैक्षणिक वर्षों से, उन्होंने असाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन किया। निशिकांत की कहानी बिहार के युवाओं के लिए बड़े सपने देखने और अदम्य साहस और जुनून के साथ अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने का आह्वान है। उनकी यात्रा इस बात को रेखांकित करती है कि समर्पण और कड़ी मेहनत से कोई भी सपना बहुत दूर नहीं है।

सहयोग की भावना ।

करियर अपनाने के लिए और सशक्त बनाने में उनकी भागीदारी दूसरों के उत्थान के लिए उनकी प्रतिबद्धता को उजागर करती है। निशिकांत, शिक्षा और सशक्तिकरण की शक्ति में विश्वास करते हैं, अक्सर दूसरों को प्रेरित करने के लिए अपनी कहानी साझा करते हैं।युवाओं को सशक्त बनाना केवल उन्हें अवसर देने के बारे में नहीं है; बल्कि यह उनके सपनों को पोषित करने और उन्हें पूरा करने का साहस देने के बारे में है,” वह दृढ़ विश्वास के साथ कहते हैं निशिकांत की पहल और मार्गदर्शन ने अनगिनत लोगों के जीवन को छुआ है।

बिहार के युवा लड़कों एवं लड़कियों के लिए उनका संदेश स्पष्ट है : “खुद पर और अपने सपनों पर विश्वास रखें। यह यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन दृढ़ता के साथ, आप अपनी आकांक्षाओं को वास्तविकता में बदल सकते है।अगर हम निशिकांत सिन्हा के दरियादिली की बात करें तो इनके बारे में कुछ लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान होगा।

हालांकि अगर हम इतिहास के पन्नो का अध्ययन करेंगे तो मनुष्य को सामाजिक प्राणी की संज्ञा दी गयी है। वस्तुतः सामाजिक प्राणी का मतलब सिर्फ समाज में विचारों का आदान प्रदान, एक दूसरे के साथ सुख एवं दुःख की घड़ी में संबल प्रदान करना ही होता है।

लेकिन वर्तमान समय में मनुष्य को सामाजिक प्राणी की संज्ञा देना सिर्फ किताबी बाते ही हो सकती है अगर मनुष्य वास्तव में सामाजिक प्राणी होता तो आज समाज के मुख्य धारा से विमुख लोगों को दो वक़्त की रोटी की जुगाड़ करने के लिये खून पसीना नहीं बहाना पड़ता। लोगों में एक दूसरे के प्रति नफ़रत की भावना नहीं होती, दया, समर्पण, प्रेम, सहिष्णुता, त्याग, धैर्य, भरोसा, विश्वास पर लोगो का वजूद क़ायम होता, गरीबों और अमीरों के बीच बढ़ती खाई इस बात का प्रमाण हैं की मनुष्य स्वार्थी प्राणी होकर रह गया है।

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कोरोना काल मे मानवता का परिचय ।

लेकिन इसके उलट, अगर हम निशिकांत सिन्हा की बात करें तो इन्होने सामाजिक होने का एक नहीं सैकड़ो प्रमाण दिए हैं जो विभिन्न अखबारों और पत्र पत्रिकाओं की सुर्खियों में छाई रही है। कोरोना कल में नवादा जिले में पांच लाख रूपये मूल्य के सेनिटाइजर और मास्क के लिये वित्तीय सहायता।

कुशवाहा छात्रावास के निर्माण के लिये लाखों रूपये की सहभागिता, राजगीर में कुशवाहा धर्मशाला के लिये पांच लाख रूपये, हिसुआ में धर्मशाला के लिये दस लाख रूपये प्रदान करने के साथ साथ प्रतिभा खोज परीक्षा में सफल छात्रों एवं मैट्रिक परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर बेहतर अंक लाने वाले छात्रों को सुद्ध सोने का लौकेट एवं डिजिटल डायरी प्रदान करना भी शामिल है।नवादा जिले के दर्जनों छात्रों को नीट, वीपीएससी, आईपीएस आदि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिये देश के नामचीन कोचिंग में नामांकन कराकर उनके सपनों को उड़ान देने की कोशिश की है।

उनका मिशन बिहार के लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरना है ऐसे बिहार की कल्पना करना है जहां सभी परिवार सकून के साथ जिन्दगी जिए और एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना दिव्य ज्योति की तरह अनंतकाल तक प्रज्ववलित हो। ज्योति की तपीश में सारे भेदभाव मिट जाये और युवाओं, किसानों, दुकानदारों, मजदूरों के चेहरे की लाली यह बताये की हम सुखचैन से हैं हमें ऐसे ही जीने दो। निशिकांत ने अपने जीवन को समाज के लिये झोंक दिया है अब जात से जमात की ओर भी बढ़ने की तैयारी चल रही है।

जन सैलाब ।

बीते दिनों पटना के ऐतिहासिक मौर्य होटल में उमड़ी भीड़ इस बात का जीता जागता प्रमाण हैं की कहीं न कही लोगों के दिल में निशिकांत सिन्हा के लिये कसक है जो उन्हें शीर्ष पर देखना चाहती है।अब तक युवा उन्हें अपना आदर्श भी मानने लगे हैं। यहाँ तक की वारिसलीगंज के युवक सौरभ ने अपने कलाई पर Nishikant Sinha जी का टैटू https://www.facebook.com/100021741016615/videos/1032930241859456/अपने हाथ पर बनाकर उनके प्रति असीम श्रद्धा और प्रेम का इजहार किया है। एक ऐसा चिन्ह जो अनंतकाल तक जीवंत दस्तावेज के रूप में इतिहास के पन्नो में दर्ज रहेगा जो कि समाज का नायाब सितारा है।

जीवन परिचय विस्तार से :

मगध की धरती नवादा जिले के काशीचक प्रखंड का भट्टा गाँव की सोंधी मिट्टी में पले-बड़े निशिकांत की प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से बिहारशरीफ एवं नवादा स्थित ज्ञान भारती स्कूल से शुरू होकर देश की राजधानी जाकर खत्म हो गयी। लेकिन बचपन से आत्मविश्वास से लबरेज श्री सिन्हा ने शिक्षा तो हासिल जरूर किया परन्तु अपने लक्ष्य को भेदने के लिये कई शस्त्र का प्रयोग कठिन संघर्षों की बीच किया। अन्ततः उन्हें बहुत मशक्कत के बाद सफलता मिली।

बचपन से ही पढ़ने में मेधावी निशिकांत चंडीनामा हाई स्कूल में अध्ययन करते हुये वर्ष 1999 में अच्छे अंकों के साथ बिहार विधालय परीक्षा समिति द्वारा आयोजित वार्षिक माध्यमिक परीक्षा उर्तीण किया। निशिकांत के पिता इन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे। उन्होंने मेडिकल की तैयारी के लिये निशिकांत को दो वर्ष तक पटना में अच्छे कोचिंग से तैयारी कराया। जवाहर लाल नेहरू इंटर कॉलेज में इंटर का नामांकन भी कराया। दो वर्ष तक पटना में रहकर तैयारी किया परन्तु सीबीएसई द्वारा आयोजित परीक्षा में बेहतर रैंक नहीं मिलने के कारण इन्होने दंत चिकित्सा की पढ़ाई के लिये चुना गया। परन्तु निशिकांत का मन दंत चिकित्सा में नहीं जाने का था। इसलिये इन्होने दिल्ली जाकर नोए‌डा में बायोटेक से बीएससी करने के साथ संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने लगे।

निशिकांत अपने कॅरियर को अच्छे अधिकारी के रूप में स्थापित करना चाहते थे या स्वतंत्र व्यापार करने का लक्ष्य रखा था। चुकि स्कूली जीवन मनुष्य की जीवन यात्रा के उत्थान-पतन का निर्णायक क्षण होता है। जीवन के प्रति गहरी समझ नहीं होते हुये भी यह कालखंड कालांतर में आने वाली हर बाधाओं और प्रतिकुलताओं से मुकाबला करने में हमे मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करता है। भविष्य के प्रति हमारी सोच की रूपरेखा का महत्वपूर्ण समय यही होता है। यही कारण है कि देश और दुनिया के तमाम नामचीन विश्वविधालयों से डिग्रियां लेने और सरकारी गैर सरकारी उधमों में शीर्ष स्थिति प्राप्त करने की लालसा हमारे मानस पटल पर
हमेशा हमें उत्साहित करती है। कहा भी गया है। जिस और जवानी चलती है उस और जमाना चलता है।

मुझे अरमान हैं उड़ान अभी बाकी है, अभी तो नापी है. मुठी भर जमीन हमने, अभी जो सारा आसमान बाकी है।” इन उक्तियों को चरितार्थ करने के साथ शिक्षा,
व्यवसाय, नौकरी का सपना बुनना और सपनों को उड़ान देने के लिये सही समय पर हौसलों को बुलंदी के रास्ते पर ले जाने के बाद ही बुने हुये सपने पुरे होते हैं। लेकिन सपने को साकार करने के लिये ईमानदारी पूर्वक मेहनत करने के लिये अपनी सारी शक्ति को लगाने के लिये पूरी तैयारी भी करनी होती है। निशिकांत को दिल्ली में पढ़ाई के दौरान कई लोगों से भेंट-मुलाकात हुई, घर में सारे परिवार को पता था कि निशिकांत मेडिकल की तैयारी कर रहा था। परन्तु एमबीबीएस में नामांकन नही होने के बाद स्वतंत्र होकर कोई अन्य कार्य में अपना कैरियर को बनाने का सपना चुनने में व्यस्त निशिकांत अपने सपनों को उड़ान देने के लिये देश की राजधानी में खाक छानना प्रारंभ कर दिया।

दिल्ली में निशिकांत ने काफी संघर्ष किया। कई बार तो फाँकेकसी और खानाबदोश जैसी जिंदगी भी जीने को मजबूर हुए परन्तु हार नहीं मानी। सपनों को पूरा करने का एक मात्र लक्ष्य के साथ राजनैतिक गलियारों से लेकर अपनी पैठ अधिकारियों तक बनाते हुये सामाजिक सरोकार से भी जुड़ गये। परन्तु पिता के सपनों को पूरा नहीं करने का मलाल भी हृदय में सालता रहा।

पिता अपने पुत्र पर काफी भरोसा करते थे। पिता
शिक्षा के लिये हमेशा प्रेरित करते रहे। निशिकांत चिकित्सक बनने एवं सरकारी नौकरी में सिमट कर रहने के बजाय दूसरे मार्ग से अपनी पहचान बनाने और समाज सेवा में जुड़ने के लिये वैसे काम की तालाश में जुट गये जिससे वे अपने पिता के सपनों के साथ अपने गाँव जिला और राज्य का नाम रौशन कर सके ।शिक्षा के दौरान ही उन्हें मल्टीलेवल मार्केटिंग के सेमिनार में शामिल होने का मौका मिला। एक वर्ष तक अपना सारा इफ़ोर्ट कम्पनी के लिये लगा दिया। उससे इन्हें अच्छी खासी आमदनी होना भी प्रारंभ हो गया और अपने बेहतर भविष्य के निर्माण के लिये कम्पनी के साथ कार्य करना प्रारंभ कर दिया। परन्तु एक वर्ष के बाद ही कम्पनी आर्थिक विसंगतियों के कारण लॉक हो गयी। कम्पनी से जुड़े सारे कार्यकर्ता रातों-रात सड़क पर आ गये। “” आज बादलों ने फिर साजिश की,
जहां मेरा घर था, वहाँ बारिश की, फलक को जिद है बिजलियाँ गिराने की तो हमे भी जिद है वहाँ पर आशियाँ बनाने की””

पिता को यह ज्ञात था मेरे पुत्र का स्वर्णिम भविष्य इसकी बाट जोह रहा है। पिता शशिकांत भी अपने गाँव में सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर सामाजिक सरोकार से जुड़कर हमेशा गरीबों की आर्थिक मदद भी करते रहते थे। पिता के आदशों पर चलने वाले निशिकांत ने भी अपने दिल में भी सामाजिक कार्यों से जुड़े रहने का संकल्प लिया। हालांकि उच्च शिक्षा के लिये पिता ने इन्हें आर्थिक कठिनाई को महसूस नहीं होने दिया परन्तु उस दौर में दिल्ली में रहकर पढ़ाई और फीस जमा करना चुनौती से कम नहीं थी।

दृढ़ संकल्प से हासिल की आर्थिक आजादी ।

परन्तु आत्मविश्वास से लबरेज निशिकांत ने अपने जीवन में हार नहीं मानने की ठान ली थी और अपने को स्थापित करने के लिये फिर से संघर्ष करना शुरू कर दिया। बिना पूंजी के कोई ढंग का रोजगार करना काफी मुश्किल भरा था। अपने कई दोस्तों की सलाह पर जॉब कन्सलटेंसी का कार्य करना प्रारंभ कर दिया। शुरुआती दिनों में तो कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन समय के साथ रोजगार में भी अवसर बढ़ने लगे और कॉल सेंटर एवं आई टी कंपनियों में अपने माध्यम से अपना बिजनेस को इस कदर बढ़ाया कि अच्छी आमदनी भी प्रारंभ हो गयी। बाबजूद निशिकांत इससे संतुष्ट नहीं थे। जॉब कंसल्टेंसी कार्य करने के दौरान कई सेमिनार में भाग लेते हुये देश के विभिन्न राज्यों के लोगों से सम्पर्क हुई जिसमें शिमला की रहने वाली रितु जो नामचीन कम्पनी में एरिया मैनेजर के पद पर कार्य करती थी।
आए दिन प्रायः उससे सेमिनार के दौरान भेंट-मुलाकात भी होती रहती थी। धीरे-धीरे दोनों एक दुसरे के स्वाभाव से परिचित होते हुये दोनों में गाड़ी दोस्ती हो गयी। हर एक सुख और दुख की बात भी दोनों में साझा होने लगी। अपने कैरियर के प्रति काफी सर्तक निशिकांत का काम छुटने के बाद फिर से सेटल होने के लिये कोई बेहतर कार्य की तलाश भी करनी थी। इस बीच दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गयी। निशिकांत ने अपने माता-पिता से अपने प्यार के बारे में सारी बातें बता दिया। निशिकांत के पिता अपने पुत्र की खुशी के लिये अपने तरफ से हामी भी भर दिया। वे स्वयं दिल्ली जाकर रितु से मुलाकात कर रितु को अपने बहु के रूप में स्वीकार कर लिया। परन्तु राह इतना आसान नहीं था। रितु के पिता ने रितु को शादी करने के लिये कहा तो रितु खुल कर इस संदर्भ में बात नहीं कर सकी
समय का पंछी चलता रहा और प्यार भी परवान पर था। निशिकांत इन दिनों काफी परेशान हो रहे थे। एक काम छूटने की चिंता तो दुसरी तरफ पिता को शादी के लिये रजामंदी देने के बाबजुद शादी में आ रही बाधाओं के कारण काफी परेशान ही रहे थे। रितु भी इनकी परेशानी से वाकिफ थी। अपने प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिये अपने परिवार से निशिकांत से शादी करने का प्रस्ताव रखा। घरवालों को निशिकांत के बारे में ज्यों ही पता लगा कि निशिकांत विहार से हैं. परिवार वालों को गुस्सा सातवें आसमान पर आ गया। इसकी खास बजह भी है। हालांकि बिहार का नाम देश के विभिन्न राज्यों में भले ही भैया और अन्य नामों से जाना जाता हो परन्तु यह भी सत्य है कि चाहे देश की राजनीति की बात हो देश के सर्वोच्च प्रतियोगी परीक्षा की बात हो या अन्य क्षेत्र की बात हो तो बिहारियों का जलवा रहा है। बिहार के लोग किसी दूसरे राज्य में मजदूर का भी कार्य करते है तो पुरे स्वभिमान और ईमानदारी के साथ करते है। बावजूद दुसरे प्रदेशों में बिहारियों को हेय दृष्ट्रि से देखा जाता है।
बस यही कारण था कि रितु के परिवार वाले निशिकांत के साथ शादी का प्रस्ताव सिरे से खारिज कर दिया। हालांकि रितु जानती थी निशिकांत में वह सभी गुण मौजूद है जो किसी भी परस्थितियों का सामना कर सकने में सक्षम और मेरा भविष्य भी निशिकांत के साथ सुरिक्षत है परन्तु यह बात अपने परिवार वालों को कैसे समझा पाती की निशिकांत मेरे लिये महत्त्वपूर्ण है। अब निशिकांत के लिये बहुत ही परेशानी की बात हो गयी, एक तरफ व्यवसाय को स्थापित करना और दूसरी तरफ रितु के साथ शादी की रस्में पुरी करना परन्तु निशिकांत भी हार मानने बालों में से नहीं थे। इन्होंने रितु से अपने माता-पिता से एक बार भेंट करने के लिये राजी कर लिया। निशिकांत जानते थे कि मैं रितु के परिवार वालों को सभी तरह से संतुष्ट कर लूंगा।वही हुआ, रितु अपने परिवार से निशिकांत को भेंट करा दिया। और निशिकांत रितु के परिवार को पूरी तरह से संतुष्ट कराने में सफल हो गये। अब निशिकांत के लिये रितु के साथ शादी का रास्ता साफ हो गया।
इस बीच निशिकांत का गुजरात के बड़ौदा आना-जाना लगा रहता था। क्योंकि निशिकांत की बहन एवं बहनोई बड़ौदा में ही रहते थे। निशिकांत कई वर्षों से बड़ौदा
जा रहे थे। शादी के पूर्व अपने को व्यवसाय में स्थापित करने के पूर्व इन्होंने दिल्ली में मनोविज्ञान की प्रोफेसर एवं गुरू से मुलाकात कर अपने भविष्य में कैरियर को किस क्षेत्र में सफलता प्राप्त ही इसके लिये अपनी कुडंली भी दिखाई। उन्होने निशिकांत को आयरन का बिजनेस में सफलता प्राप्त करने की बात कही। निशिकांत ने रितु से शादी के पूर्व अपना कैरियर बड़ौदा में तालाश करने के लिये रितु से रायशुमारी किया।
रितु ने भी इसमें हामी भरी चुकि दिल्ली में अब ऐसा कोई कार्य नहीं बचा था जिससे अपने लक्ष्य को हासिल कर सके। बड़ौदा में आकर निशिकांत ने अपनी सारी जमा पूंजी को टीवीएस का शोरूम खोलने में लगा दिया और कार्य करना प्रारंभ कर दिया। 2007 में रितु निशिकांत को जीवन संगिनी बन गयी। सभी कार्यों को बखूबी हमसफर बनकर भी संभाल लिया। इस बीच दो पुत्री का जन्म भी हुआ।

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जिंदगी में अपने लक्ष्य और पूरा सकू की तलाश में मनुष्य जमीन, आसमान और समंदर को असंख्य यात्रा करता है। यह यात्रा स्वप्न से यथार्थ की अंतयांजा होती है। जमीनी यात्रा मनुष्य को प्रकृति और कुदरत के रहस्य, रोमांच और तिलिस्म से रूबरू कराती है तो समंदर की अतल गहराइयों, असीम विस्तार और करवटे मनुष्य को उसके बौनेपन का भी एहसास कराती है। जिंदगी में खुशियों की एहसास हृदय को काफी सकूँन दे रही थी लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। परन्तु मनुष्य परिस्थितियों का दास होता है।

निशिकांत जीवन में संघर्षों का दौर समाप्त होने के बजाय सारे सपने उस वक्त बिखर गये, जब निशिकांत के पिता की तबियत अचानक खराब हो गयी और उन्हें बेहतर चिकित्सा के लिये देश के विभिन्न नामचीन अस्पतालों में इलाज के लिये भटकना पड़ा। निशिकांत अपने पिता को मृत्यू के करीब देखकर हौसले पस्त होने लगे। कभी हार नही मानने वाले निशिकांत निर्विकार भाव से अपनी सारी ताकतें के साथ सारी मिल्कियत को अपने पिता के जीवन बचाने में लगा दिया। जिस पिता ने हर समय सभी परिस्थितियों में देवदूत बनकर निशिकांत को सम्बल प्रदान करते रहे उसी देवदूत को चिकित्सक ने कई दिनों तक जीवनरक्षक प्रणाली उपकरण पर रखा परन्तु उन्हें बचाने में सफलता नही मिली और निशिकांत के सर से पिता का साया उठ गया।

निशिकांत उस वक्त अंदर से काफी टूट गये। बड़ौदा में बहन और उनके जीजा ने उन्हें काफी संबल दिया। परन्तु मानसिक और आर्थिक दोनों रूप से टुट चुके निशिकांत के समक्ष दूर-दूर तक कोई रास्ता नहीं था लेकिन बड़ौदा में रहने वाली बहन ने अपने भाई को स्वयं घर खर्च से बचे पैसे से कई माह तक मदद किया। आर्थिक विषमताओं के कारण खरीदे गए घर को बेचकर किराए के घर से अपनी जीवन की नई पारी की शुरुआत किया। अपने पिता के दिये गये आर्शीवाद और उनके सपनों को पुरा करने का जज्बा और जुनून कम नहीं हुआ।

‘खोल दें पंख मेरे कहता है परिंदा, अभी और उड़ान बाकी है, जमीं नही है मेरी मंजिल, अभी पूरा आसमान बाकी है, लहरों की खामोशी को समंदर की बेवशी मत समझ, जितनी गहराई अंदर है बाहर उतना तूफान बाकी है।
“जब टूटने लगे हौसले तो याद रखना”
“बिना मेहनत के तख्तो ताज नही होते”
“ढूंढ लेना अंधेरों में मंजिल अपनी”
“जुगनू कभी रोशनी की मोहताज नही होती”

अपना स्वयं का लाखों का कारोबार करने वाले निशिकांत एक वर्ष तक आईसीआईसी बैंक में एरिया मैनेंजर का कार्य करना प्रारंभ कर दिया। करीब एक वर्षों तक काम करने के बाद निशिकांत ने फिर से अपना काम करने एवं अपने मुख्य लक्ष्य को भेदने के लिये अपना प्रयास जारी कर दिया। 2010 में अपनी सारी पूंजी खो चुके निशिकांत ने अपने घर को चलाने के लिये अपनी पत्नी की सारी ज्वेलरी गिरवी रख दिया और अपने हुनर का प्रयोग करते हुये घर से ही लैपटौप के माध्यम से एचआर का काम करना शुरू कर दिया। शुरूआत के छः महीने का वक्त काफी बुरा रहा, निशिकांत को यह बिल्कुल नहीं ज्ञात था कि हमारे दिन इतने बुरे होगें।

लेकिन धैर्य, साहस, और आत्मविश्वास को अपना हथियार बनाने बाले निशिकांत ने पुरी तन्मयता के साथ जिंदगी की आखिरी दावं खेली और एक साल गुजरते हुये चालीस हजार महीने की आमदनी के साथ शुरूआत हुआ कार्य लाखों तक होने लगा। धीरे-धीरे निशिकांत के बुरे दिन खत्म होने लगे और स्वर्णिम भविष्य की राह दिखने लगी। वर्ष 2014 में स्वयं का ऑनलाइन एग्जाम आई टी कम्पनी खोल अपना कार्यक्षेत्र को बढ़ाया लेकिन तृष्णा ऐसी थी कि कभी चैन से रहने नहीं दिया। निशिकांत को बचपन से ही यह शौक था कि लोग हमें हमारे नाम से जाने और समाज के मुख्यधारा से नीचे रहने वालो लोगों को हमारे माध्यम से मुख्यधारा में लाने का प्रयास भी किया जाये। इसके लिये तो कार्यक्षेत्र भी व्यापक होना था और आर्थिक रूप से सक्षम भी होना जरूरी था। लिहाजा स्वयं का आईटी कम्पनी खोलने का लक्ष्य लेकर अपना कार्य करना प्रारभ कर दिया।

2018 में अपनी जमा पूंजी के साथ करोड़ों रूपये की गांरटी लोन के साथ रिच मांइड के नाम से स्वयं की आईटी कम्पनी को लांच किया। विभिन्न प्रदेशों के सरकारों के साथ आईटी से सबंधित कार्य हो रहे हैं। आज निशिकांत पुरी तरह से स्थापित हो चुके है लेकिन अभी भी उनके सपनें अधुरे हैं। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि मुझे अपने गाँव समाज एवं राज्य का नाम रौशन करना हैं।

” पंख से कुछ नही होता, हौसलों से उड़ान होती है। मंजिलें उन्हीं को मिलती है, जिनके हौसलों में जान होती है।”
लिहाजा जीवन में सफल होने के लिये शिक्षा जरूरी है। सकारात्मक सोच के साथ पूरी ईमानदारी से कार्य करने से मंजिल अवश्य मिलती है। शून्य से शिखर तक पहुंचने के लिये कठिन संघर्षों के बीच खुद को तपाने की जरूरत होती है। क्योंकि सोना को तपा कर ही कुंदन बनाया जाता है। वक्त और हालात की परछाई के बीच युवा मेहनत करें और आत्मविश्वास धैर्य, शहनशीलता, त्याग, समर्पण को हथियार समय पर सही निर्णय के साथ अस्त्रों का प्रयोग करें
‘लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नही होती,
समंदर से सीखा है हमने जीने का सलीका,
चुपचाप बहना और अपनी मौज में रहना’।

बिहार की धरती ने अनेकों सुपुत्रों को जनम दिया और उन्ही सुपुत्रो मे से एक Nishikant Sinha का भी नाम आता है । जो समाज के प्रति दरियादिली और युवाओं की दिलों की धड़कन बन बैठे हैं । उनके सोच और जज्बे को सलाम है ।

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